Jharkhand Assembly Election: झारखंड चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है. यहां दो फेज में चुनाव होंगे. साल 2000 में राज्य बनने के बाद से झारखंड में अब तक चार बार विधानसभा चुनाव हुए है. और राज्य ने अब तक 13 बार मुख्यमंत्री बदल चुके हैं. इनमें केवल रघुबर दास ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाए हैं.
झारखंड. राज्य को बने 24 साल हुए. इस दौरान 4 विधानसभा चुनाव हुए. तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा. और 13 बार मुख्यमंत्री बदले. सिर्फ रघुबर दास बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर पाए. 3 मुख्यमंत्री ऐसे रहे. जिन्होंने तीन बार शपथ ली. जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शामिल हैं. हेमंत सोरेन चौथी बार उस राज्य के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर दावेदारी कर रहे हैं, जिस पर उनके पिता शिबू सोरेन भी तीन बार बैठ चुके हैं. जिनकी झारखंड राज्य के बनने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. झारखंड में अगले महीने चुनाव होने हैं. इस चुनाव पर विस्तार से बात करेंगे. पहले एक नज़र राज्य के इतिहास पर डाल लेते हैं. बिहार को दो हिस्सों में बांटकर कैसे बना झारखंड? क्यों इसे सबसे लंबा राज्य निर्माण आंदोलन कहा जाता है? और अलग राज्य बनने के बाद कैसे यहां सियासत की एक नया प्रयोगशाला शुरू हुई?
झारखंड राज्य बनने की कहानी
झारखंड का आंदोलन सबसे लंबे समय तक चलने वाला राज्य निर्माण आंदोलन माना जाता है. इसकी शुरुआत साल 1912 में हो गई थी. J BARTHOLOMAN को इस आंदोलन का जनक माना जाता है. उन्होंने 1912 में क्रिश्चियन स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की थी. लेकिन साल 1915 में उनको ही संगठन से बाहर कर दिया गया. और इस संगठन का नाम बदलकर छोटानागपुर उन्नति समाज कर दिया. इस संगठन के प्रमुख चेहरे थे- जुएल लगड़ा, बांदी राम उरांव, ठेवले उरांव और पॉल दयाल. इस संगठन ने ही सबसे पहले अलग झारखंड राज्य की मांग उठाई थी.
इसके बाद आदिवासी महासभा ने इस मुद्दे को स्वर दिया. आदिवासी महासभा का गठन 1938 में जयपाल सिंह मुंडा ने किया था. जयपाल सिंह मुंडा भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे थे. और संविधान सभा के भी सदस्य थे. जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी का गठन किया. जयपाल सिंह मुंडा ने ही भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने अलग झारखंड राज्य का प्रस्ताव रखा. पर तब उनकी सुनवाई नहीं हुई. लेकिन वो अपने अभियान में जुटे रहे. साल 1963 में उनकी पार्टी को 32 सीटें मिलीं. लेकिन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. बी. सहाय अपने राजनीतिक कौशल से उनकी पार्टी तोड़ देते हैं. इसके बाद जयपाल सिंह मुंडा अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर देते हैं.
आंदोलन 1963 से लेकर 1972 तक धीमी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा. इसके बाद झारखंड राज्य आंदोलन की बागडोर एन. ई. होरो, सुशील कुमार बागे, बागुन सोंब्रई और रामदयाल मुंडा ने संभाली. लेकिन इस आंदोलन में असली धार तब आई जब विनोद बिहारी महतो ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) बनाया. उन्होंने शिबु सोरेन को पार्टी का महामंत्री बनाया. जिन्होंने आदिवासियों को इस पार्टी और संघर्ष से जोड़ा. वहीं कॉमरेड एके रॉय जैसे जुझारू नेता भी इस पार्टी से जुड़े. जिससे अलग राज्य आंदोलन को मजबूत सुर मिला.
ये लोग लगातार झारखंड राज्य के लिए आंदोलन चलाते रहे. 1994 में झारखंड अंतरिम परिषद का गठन हुआ. और झारखंड को कुछ अधिकार मिले. लेकिन इनके संघर्ष को आखिरी मुकाम मिला, साल 2000 में. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने झारखंड राज्य को मान्यता दे दी. 15 नवंबर 2000 को एक अलग राज्य के रूप में झारखंड अस्तित्व में आया.
बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले सीएम
साल 2000 में झारखंड में चुनाव नहीं कराए गए थे. पिछले इलेक्शन के आधार पर झारखंड राज्य में बीजेपी का बहुमत था. इसलिए उन्हें सरकार बनाने का मौका मिला. और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने बाबूलाल मरांडी. बाबूलाल मरांडी ने 15 नवंबर 2000 को झारखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिया. उस समय वे विधायक नहीं थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने रामगढ़ विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता. बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्री रहते राज्य में डोमिसाइल विवाद (राज्य का असली निवासी कौन) में बड़े पैमाने पर हिंसा की घटना हुई. जिसके चलते बाबूलाल मरांडी को सीएम पद से हटा दिया गया.
यहीं से बाबूलाल मरांडी कुछ कटे-कटे से रहने लगे. हालांकि बीजेपी ने उन्हें रोकने की कोशिश की. लेकिन साल 2006 में उन्होंने बीजेपी छोड़ दी. और अपनी नयी पार्टी बना ली. झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम). बाबूलाल मरांडी ने 14 साल तक जेवीएम पार्टी से राजनीति की. और फिर फरवरी 2020 को उनकी घर वापसी हुई. उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया.
बाबूलाल मरांडी के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया. अर्जुन मुंडा खरसावां विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे. उन्होंने 18 मार्च 2003 को पद और गोपनीयता की शपथ ली. वह मार्च 2005 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे.
साल 2005 में पहली बार झारखंड में चुनाव
बसंत की आवक और पलाश के फूलों की महक के बीच झारखंड में पहली बार चुनाव हुए. 81 सीट वाली विधानसभा में तब किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला. 30 सीट जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. उसके नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को 36 सीटें मिलीं. जो कि बहुमत के जादुई आंकड़े से पांच सीट कम था. वहीं इस चुनाव में शिबू सोरेन की पार्टी JMM को 17 सीटें मिली. और उनकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस के खाते में 9 सीटें आईं. यूपीए गठबंधन को कुल 26 सीटें मिलीं. तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. और सैयद सिब्ते रजी झारखंड के गवर्नर थे. चुनाव नतीजों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने सिब्ते रजी से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया. उधर शिबू सोरेन ने भी गवर्नर के पास 42 विधायकों के समर्थन का दावा कर दिया. हालांकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी. लेकिन गवर्नर ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता दे दिया. इस पर रांची से दिल्ली तक खूब हंगामा हुआ.
एनडीए समर्थक विधायकों की परेड
2 मार्च, 2005 को राज्यपाल ने शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. और 21 मार्च तक बहुमत साबित करने का वक्त दे दिया. इस पर खूब हंगामा बरपा. मामला राष्ट्रपति से लेकर सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंचा. उस वक्त एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति थे. लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडिस की अगुआई में एनडीए का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति भवन पहुंचा. और राष्ट्रपति से मामले में दखल देने की मांग की. साथ ही पांच निर्दलीय समेत 41 एनडीए समर्थित विधायकों की परेड राष्ट्रपति भवन में करवाई.
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने 3 मार्च को झारखंड के गवर्नर सैयद सिब्ते रजी को तलब किया. और शिबू सोरेन सरकार को बहुमत परीक्षण के लिए दिए गए समय में कटौती करने को कहा. इस बीच बीजेपी नेता राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के इस कदम पर तल्ख टिप्पणी की. चीफ जस्टिस आर सी लोहाटी, जस्टिस वाई के सबरवाल और जस्टिस डी. एम. धर्माधिकारी की बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता का दावा सही है. राज्यपाल का कदम (शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना) संविधान के साथ फ्रॉड है. इसके आगे और फ्रॉड न हो. ये रोकना होगा.
कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट की तारीख 11 मार्च तय कर दी. 11 मार्च को विधानसभा में काफी हंगामा हुआ. क्योंकि शिबू सोरेन की यूपीए समर्थित सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था. प्रोटेम स्पीकर ने सदन को 15 मार्च तक स्थगित कर दिया. बीजेपी ने फिर हंगामा किया. जिसके बाद केंद्रीय कैबिनेट के राजनीतिक मामलों की समिति के निर्देश पर देर रात शिबू सोरेन ने इस्तीफा दे दिया. केंद्रीय कैबिनेट की समिति ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक ही शिबू सोरेन को इस्तीफा देने की सलाह दी थी.
अर्जुन मुंडा दोबारा सीएम बने
शिबू सोरेन के इस्तीफे के बाद राज्य में एक बार फिर से बीजेपी की सरकार बनी. बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों की मदद से बहुमत का आंकड़ा जुटाया. और अर्जुन मुंडा ने 12 मार्च 2005 को फिर से सीएम पद की शपथ ली. इस बार उनका कार्यकाल 1 साल 90 दिनों का रहा. उस समय निर्दलीय विधायकों का एक ग्रुप था जिसे जी-5 के नाम से जाना जाता था. इनमें मधु कोड़ा, कमलेश सिंह, बंधु तिर्की, एनोस एक्का और सुदेश महतो शामिल थे. अर्जुन मुंडा की सरकार इन्हीं पर टिकी हुई थी. इनके पास बहुत ज्यादा ताकत थी. और ये हरेक मसले पर सरकार के साथ सौदेबाजी में उतर आते थे. 18 सितंबर 2006 को उनकी सरकार गिर गई. क्योंकि सुदेश महतो को छोड़कर मधु कोड़ा सहित चार निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
देश के इतिहास में पहली बार निर्दलीय मुख्यमंत्री
18 सितंबर को झारखंड में वो हुआ जिसकी कल्पना भी शायद ही किसी ने की होगी. देश के इतिहास में पहली बार एक निर्दलीय विधायक ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. नाम था मधु कोड़ा. कांग्रेस और जेएमएम के समर्थन से मधु कोड़ा ने 18 सितंबर 2006 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वे जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. कोड़ा बीजेपी की पिछली सरकारों में मंत्री भी रहे थे. दरअसल अर्जुन मुंडा सरकार में मंत्री बनने के कुछ दिन बाद से ही मधु कोड़ा और अर्जुन मुंडा के बीच खटपट होने लगी. कांग्रेस और जेएमएम को इस तकरार की भनक लगी. और मौके की नजाकत समझते हुए मधु कोड़ा को अपने खेमे में मिलाया. इसके बाद मधु कोड़ा ने तीन और निर्दलीय विधायकों (कमलेश सिंह, बंधु तिर्की और एनोस एक्का) को अपने भरोसे में लिया. और सरकार से समर्थन वापस ले लिया. जिसके बाद अर्जुन मुंडा की सरकार अल्पमत में आ गई.
इसके बाद मधु कोड़ा ने साल 2006 में सरकार बनाने का दावा पेश किया. कोड़ा सरकार में जेएमएम, आरजेडी, यूनाइटेड गोमांतक डेमोक्रेटिक पार्टी, एनसीपी, फारवर्ड ब्लॉक और तीन निर्दलीय विधायक शामिल हुए. जबकि कांग्रेस ने बाहर से समर्थन किया. मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद खनन विभाग, ऊर्जा सहित कई महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखा था.
मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री रहते विनोद सिन्हा नाम का एक शख्स सुर्खियों में आया. आयकर विभाग ने विनोद सिन्हा और मधु कोड़ा से जुड़े देशभर के 167 स्थानों पर छापेमारी की. कोड़ा के कार्यकाल में कोयला, आयरन, खदान आवंटन और ऊर्जा विभाग में कार्य आवंटन में भ्रष्टाचार के मामले सामने आए थे. इसके बाद जांच एजेंसियां सक्रिय हुईं. और मधु कोड़ा और उनके सहयोगियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ. इसके चलते कांग्रेस ने मधु कोड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद एक बार फिर से शिबू सोरेन ने राज्य की सत्ता संभाली और मुख्यमंत्री बने.
शिबू सोरेन फिर मुख्यमंत्री बने
मधु कोड़ा की सरकार गिरने के बाद एक बार फिर से सत्ता की चाबी JMM के पाले में गई. और शिबू सोरेन राजद और कांग्रेस की मदद से एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने. इस बार उनका कार्यकाल 145 दिनों का रहा. 19 जनवरी 2009 तक वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे. दरअसल शिबू सोरेन जब मुख्यमंत्री बने तब वे विधानसभा के सदस्य नहीं थे. उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी थी. जदयू विधायक रहे रमेश मुंडा के निधन के बाद तमाड़ विधानसभा की सीट खाली हुई थी. शिबू सोरेन ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया. क्योंकि उनकी पार्टी का कोई विधायक अपनी सीट छोड़ने को तैयार नहीं था. यहां राजनीति के माहिर खिलाड़ी शिबू सोरेन चूक गए. उन्होंने पहली बार संथाल परगना छोड़कर छोटानागपुर से चुनाव लड़ने का फैसला किया. जो कि मुंडा बहुल क्षेत्र था. उनका यह फैसला आत्मघाती साबित हुआ. नए-नए आए जदयू के गोपाल कृष्ण पातर (उर्फ राजा पीटर) ने उन्हें लगभग नौ हजार से ज्यादा वोटों से हराया. उनके हारते ही राजद, कांग्रेस और JMM गठबंधन की सरकार गिर गई. और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया, जो 345 दिनों तक रहा.
साल 2009 में दूसरी बार हुए चुनाव
साल 2009 के चुनाव में कांग्रेस गठबंधन 25 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरा. चुनाव से पहले कांग्रेस ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम से गठबंधन किया था. जेवीएम को 11 सीटें मिली. कांग्रेस के खाते में 14 सीटें गईं. वहीं बीजेपी गठबंधन को इस बार 20 सीटों से संतोष करना पड़ा. जिसमें बीजेपी को 18 सीट मिलीं. राजद को पांच सीट मिलीं. जेएमएम के खाते में 18 सीटें गईं. और 13 सीटें निर्दलीय और दूसरे दलों को मिला. चुनाव नतीजों के बाद पहले जेएमएम और कांग्रेस ने सरकार बनाने को लेकर बातचीत शुरू की. लेकिन इस बार कांग्रेस जेएमएम को मुख्यमंत्री पद देने को तैयार नहीं दिख रही थी. क्योंकि उनकी और बाबूलाल मरांडी की जेवीएम गठबंधन को ज्यादा सीटें मिली थीं. वहीं शिबू सोरेन मुख्यमंत्री पद के लिए अड़े हुए थे. ऐसे में उनकी बात नहीं बन पाई.
बीजेपी की मदद से ‘दिशोम गुरु’ बने सीएम
इस बीच शिबू सोरेन ने बीजेपी के साथ भी बातचीत का एक फ्रंट खोला. वहां उनकी बात पट गई. और शिबू सोरेन एनडीए के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए. और बीजेपी की ओर से रघुबर दास उपमुख्यमंत्री बने. ये सरकार शुरुआत में चार-पांच महीने तो ठीक चली. फिर आया 27 अप्रैल. बीजेपी की ओर से सुषमा स्वराज लोकसभा में कटौती प्रस्ताव ले आईं. शिबू सोरेन ने एनडीए में होते हुए इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया. दरअसल वे मुख्यमंत्री बनने के पहले दुमका सीट से सांसद थे. और अभी सांसदी से इस्तीफा नहीं दिया था. और केंद्र की कांग्रेस सरकार के पास उनकी दुखती रग थी. क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे थे. जिसके दबाव में उन्होंने यूपीए के पक्ष में वोट किया. शिबू सोरेन के इस कदम के बाद बीजेपी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया. जिसके बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई. शुरूआत में तो शिबू सोरेन ने इस्तीफा देने से मना कर दिया. लेकिन हाथ-पांव मारने के बाद भी जब बहुमत नहीं जुगाड़ पाए तो 30 मई को इस्तीफा दे दिया. शिबू सोरेन के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद एक बार फिर से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. 1 जून 2010 से 11 सितंबर 2010 तक यानी 102 दिन तक झारखंड में राष्ट्रपति शासन रहा.
राष्ट्रपति शासन के बाद फिर साथ आए जेएमएम बीजेपी
राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान जेएमएम ने कांग्रेस जेवीएम गठबंधन समेत तमाम छोटे-छोटे दलों से संपर्क किया. लेकिन सरकार बनाने में असफल रहे. इन्होंने जोड़तोड़ की भी पूरी कोशिश की. लेकिन झारखंड में मुख्यमंत्री को मिलाकर 12 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं. ये शिबू सोरेन के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बन गया.
इस बीच बीजेपी ने एक बार फिर से जेएमएम से एप्रोच किया. और फिर से एनडीए की सरकार बनी. गठबंधन में तीन दल शामिल हुए बीजेपी, जेएमएम और आजसू. आजसू के पास उस समय पांच सीट थी. इस बार समझौते में मुख्यमंत्री पद बीजेपी के खाते में गया. अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने. और दो डिप्टी सीएम बनाए गए. हेमंत सोरेन और सुदेश महतो. ये सरकार सितंबर 2010 में बनी. और जुलाई 2013 तक लगभग ढाई साल तक चली. हेमंत सोरेन डिप्टी सीएम थे. लेकिन उनके भीतर कहीं न कहीं मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा दबी हुई थी. और महत्वकांक्षा को हवा दी कांग्रेस और राजद ने. हेमंत सोरेन ने मौके की नजाकत समझते हुए डोमिसाइल का मुद्दा उठा दिया. और बीजेपी पर इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेने का आरोप लगाते हुए सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
इसके बाद एक बार फिर से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. यह तीसरा मौका था जब झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया गया. राज्य में पैदा हुए संवैधानिक संकट के चलते तत्कालीन राज्यपाल सैयद अहमद ने विधानसभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने का सुझाव दिया था. जिस पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी मंजूरी दे दी. और फिर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस पर हस्ताक्षर कर दिया. इस बार इसकी मियाद 176 दिन तक रही.
13 जुलाई 2013 को इस संवैधानिक संकट का अंत हुआ. जब कांग्रेस और राजद के सहयोग से हेमंत सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. हेमंत सोरेन राज्य के पांचवे मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल 1 साल 168 दिनों का रहा.
साल 2014 में बीजेपी की हुई वापसी
झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 में 37 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. वहीं बीजेपी की गठबंधन सहयोगी सुदेश महतो की आजसू को पांच सीट मिली. इस चुनाव में JMM और कांग्रेस का तालमेल नहीं हो पाया. और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरी. JMM के खाते में जहां 19 सीटें गईं. वहीं कांग्रेस को 7 सीटों पर सफलता मिली. बाबू लाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं अन्य के खाते में 6 सीटें गईं. बीजेपी के नेतृत्व में राज्य में एनडीए गठबंधन की सरकार बनी. और रघुबर दास मुख्यमंत्री बने. रघुबर दास पूर्वी सिंहभूम जिले की जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट से विधायक बने थे. वे 29 दिसंबर 2019 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे. रघुबर दास झारखंड के अब तक के इतिहास के इकलौते मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है.
2019 में महागठबंधन ने बीजेपी को हराया
साल 2019 के चुनाव में रघुबर दास के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही बीजेपी 25 सीटों पर सिमट गई. रघुबर दास अपनी खुद की सीट हार गए. बीजेपी के बागी सरयू राय ने उनको जमशेदपुर ईस्ट सीट से पटखनी दे दी. इस बार JMM ने पिछली भूल से सबक लिया. और कांग्रेस और राजद के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में गई. इस गठबंधन ने राज्य में बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. JMM 30 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. वहीं कांग्रेस ने 16 सीटें जीती. और उनके सहयोगी राजद को 1 सीट मिली. इसके अलावा जेवीएम को 3 सीट मिली. आजसू ने दो सीट जीतीं. और अन्य के खाते में 4 सीटें गईं.
हेमंत सोरेन तीसरी बार सीएम बने
47 सीटों के साथ JMM कांग्रेस राजद गठबंधन ने झारखंड में सरकार बनाई. और हेमंत सोरेन को इस सरकार का मुखिया चुना गया. हेमंत सोरेन ने दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली. वे 31 जनवरी 2024 तक इस पद पर बने रहे. 31 जनवरी को कथित जमीन घोटाले के एक मामले में ईडी ने उनको गिरफ्तार कर लिया. ईडी के गिरफ्तार किए जाने से पहले हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने के बाद JMM-कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन ने चंपई सोरेन को अपना नेता चुन लिया. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के दो दिन बाद चंपई सोरेन ने 2 फरवरी 2024 को झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. चंपाई सोरेन 3 जुलाई 2024 तक इस पद पर रहे. हेमंत सोरेन की रिहाई के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा.
28 जून 2024 को हेमंत सोरेन को कथित जमीन घोटाले मामले में राज्य के हाई कोर्ट से जमानत मिल गई. और शाम तक वे जेल से बाहर आ गए. हेमंत सोरेन लगभग पांच महीने तक जेल में रहे. जेल से बाहर आने के बाद एक बार फिर से हेमंत सोरेन राज्य की कमान संभालने को तैयार थे. 3 जुलाई को JMM कांग्रेस और राजद गठबंधन के नेताओं ने रांची में चंपाई सोरेन के आवास पर एक बैठक की. और इस बैठक में विधायकों ने सर्वसम्मति से हेमंत सोरेन को JMM विधायक दल का नेता चुन लिया. 3 जुलाई की ही शाम को चंपाई सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. और इसके साथ ही एक बार फिर से हेमंत सोरेन के सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया.
चंपाई पर चढ़ा भगवा रंग
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 17 अगस्त को चंपाई सोरेन रांची से अचानक कोलकाता पहुंचे. और वहां से फिर दिल्ली गए. दिल्ली में उनके बीजेपी के नेताओं से मिलने की बात सामने आई. और इसके बाद उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें लगने लगीं. 18 अगस्त को उन्होंने एक लेटर जारी कर कहा कि उन्हें जबरन सीएम पद से हटाया गया. 20 अगस्त को वे दिल्ली से लौटे. और अपने क्षेत्र में एक्टिव हुए.
25 अगस्त को एक बार फिर से चंपाई सोरेन कोलकाता पहुंचे. और 26 को वहां से दिल्ली गए. यहां एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत में उन्होंने किसी से भी बात होने से इनकार किया. लेकिन शाम होते-होते बीजेपी नेता हिमंता बिस्वा सरमा ने उनकी अमित शाह से मुलाकात और बीजेपी में शामिल होने की जानकारी दी. इसके बाद 28 अगस्त को चंपाई सोरेन दिल्ली से वापस लौटे एक एक्स पोस्ट कर JMM छोड़ने की जानकारी दी. और 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल हो गए.
हेमंत की ‘कल्पना’ साकार हुई
31 जनवरी 2024. हेमंत सोरेन को ईडी ने अरेस्ट किया. इस बीच हेमंत सोरेन ने विधायक दल की बैठक की. बैठक में उनके साथ एक शख्स की मौजूदगी रही. जो न विधायक थी, न सीधे जेएमएम से जुड़ी थीं. उनकी पत्नी कल्पना सोरेन. मीडिया में तो खबर चली कि हेमंत सोरेन बैठक में दो पर्ची लेकर गए थे. एक चंपाई सोरेन और दूसरी कल्पना सोरेन की. हालांकि ये खबर हकीकत कम फसाना ज्यादा निकली. विधायक दल की बैठक में चंपाई सोरेन के नाम की मुहर लगी. कल्पना सोरेन के नाम का जिक्र नहीं आया. इस बैठक के बाद हेमंत सोरेन साथ निकले तो उनके साथ कल्पना सोरेन भी थीं. ये कल्पना सोरेन का सक्रिय राजनीति में हिस्सेदारी का टीजर था.
4 मार्च को आधिकारिक इंट्री
इसके बाद हेमंत सोरेन के गिरफ्तारी के अगले दिन कल्पना सोरेन अपने आवास पर आने वाले कार्यकर्ताओं से मिलीं. जिसमें महिलाओं की बड़ी तादाद थी. वहां उनका एक छोटा सा भाषण भी हुआ. फिर आई तारीख. 4 मार्च. जगह गिरिडीह. दिवंगत पत्रकार रवि प्रकाश बीबीसी के लिए लिखते हैं,
हरी किनारी वाली ऑफ व्हाइट साड़ी, माथे पर कुमकुम की बिंदी. कलाई में घड़ी. चेहरे पर आत्मविश्वास. कल्पना सोरेन ने किसी सियासी कार्यक्रम में पहली बार माइक पकड़ा. शुरुआत में उनकी आवाज लड़खड़ाई. लेकिन सामने खड़ी भीड़ ने संभाल लिया. भीड़ से आवाज आने लगी. जेल का ताला टूटेगा, हेमंत सोरेन छूटेगा. फिर कल्पना सोरेन ने अपने आंसू पोंछे. खुद को संयत किया. और फिर उन्होंने जोरदार भाषण दिया. जिसमें उन्होंने हेमंत सरकार के सारे बड़े फैसलों का जिक्र किया. और लोगों को भावनात्मक रूप से भी जुड़ने की कोशिश की. ये उनकी पॉलिटिक्स में आधिकारिक एंट्री थी.
रैली के बाद से कद बढ़ा
इसके बाद कल्पना सोरेन की सियासी हैसियत स्थापित हो गई. राहुल गांधी भारत न्याय यात्रा के सिलसिले में उनसे मिलने पहुंचे. कल्पना सोरेन दिल्ली में केजरीवाल के गिरफ्तारी के विरोध में आयोजित विपक्षी दलों की बैठक में गईं. वहां भाषण किया. फिर मुंबई में इंडिया गठबंधन की रैली में शामिल हुईं. और फिर 21 अप्रैल को रांची में इंडिया गठबंधन की रैली का आयोजन किया. इस बीच गांडेय सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई. यह सीट हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से ठीक एक महीने पहले खाली हुई थी. 30 दिसंबर 2023 को जेएमएम विधायक सरफराज अहमद ने निजी कारणों से इस्तीफा दे दिया था. कयास लगाए गए कि हेमंत सोरेन को अपनी गिरफ्तारी का अंदेशा था. इसलिए यह सीट खाली करवाई. ताकि जरूरत पड़ने पर उनके उत्तराधिकारी के तौर पर कल्पना सोरेन को आगे किया जा सके. हालांकि जेएमएम ने इससे इनकार किया. लेकिन पार्टी ने कल्पना सोरेन को इस सीट से उम्मीदवार बनाया. कल्पना सोरेन इस सीट से 26 हजार से ज्यादा वोटों से जीतीं. और विधायक बनीं.
पिछले एक महीने में 35 से ज्यादा जगहों पर जनसभा
गिरिडीह में सियासी पदार्पण के बाद से ही कल्पना सोरेन लगातार सक्रिय रही हैं. हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद भी वो उनके साथ हर महत्वपूर्ण कार्यक्रम में दिख जाती हैं. हेमंत सोरेन की महत्वकांक्षी मइया सम्मान योजना के एलान के मौके पर भी कल्पना उनके साथ दिखीं. पिछले एक महीने में कल्पना सोरेन ने 35 से ज्यादा जगहों पर रैली और जनसभाएं की हैं. अब हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन दोनों ने अलग-अलग मोर्चा संभाल लिया है.
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